- गौशालाओं की बदहाली का आखिरकार कौन है जिम्मेदार?
- क्या योगी आदित्यनाथ या भाजपा सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट पर बट्टा लगाने की ठान रखा है जिम्मेदारों ने?
- गायों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और उनकी देखभाल के नाम पर जिम्मेदार कर रहे हैं फंड का बंदरबांट
फतेहपुर: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गाय प्रेम किसी से छिपा नहीं है। गायों के प्रति उनकी इस संवेदनशीलता का ही नतीजा है कि राज्य में सरकार बनने के बाद से ही गायों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और उनकी देखभाल के लिए कई फ़ैसले लिए गए। गोशालाएं बनवाने के निर्देश दिए गए और बजट में अलग से इसके लिए प्रावधान किया गया। लेकिन राज्य का शायद ही कोई ऐसा इलाक़ा हो जहां से आए दिन गायों-बछड़ों के मरने की ख़बर न आती हो, वो भी भूख से मरने की।
राज्य सरकार ने गांवों में गोशाला और शहरी इलाक़ों में पक्के आश्रय स्थल बनवाने के निर्देश भी दिए थे लेकिन ज़्यादातर गोशाला व आश्रय स्थलों में गायें चारे और पानी के अभाव में दम तोड़ दे रही हैं या फिर उन्हें बाहर ही घूमने के लिए छोड़ दिया जा रहा है।
हांलाकि जिन गाँवों या इलाकों में ऐसे आश्रय स्थल बने हैं उन इलाकों में अन्ना पशु वहां के किसानों के लिए पहले से ही गंभीर समस्या बने हुए थे, लेकिन अब ये स्थिति और भयावह हो गई है। हर किसान इन अन्ना जानवरों से इस कदर परेशान है कि 1076 हो या फिर मुख्यमंत्री शिकायत पोर्टल या फिर सीधे शिकायती पत्र देते हुए नजर आता है।
इसी कड़ी में ऐरायां ब्लॉक के अंतर्गत ग्राम पंचायत सुल्तानपुर घोष में निर्मित स्थायी गौशाला में देखा गया कि गौवंश किस तरीके से कमजोर व लागर हैं, देखने से साफ़ झलकता है कि गौवंशों की हड्डी किस तरीके से दिख रही हैं जिसे गिना जा सकता है। इससे साफ़ है कि गौवंशों को भरपूर तरीके से चारा व पानी नहीं दिया जा रहा है क्यूंकि गौवंशों का शरीर ही बदहाली की कहानी बयां करती हैं।
हांलाकि कुछ लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि गौशाला में न तो उचित चारे की व्यवस्था है और गौशाला में लगा समरसिबल भी कई दिनों से खराब है जिसके चलते गौवंशों को तालाब का ही पानी मजबूरी में पीना पड़ता है जिससे गौवंशों के लिए चारा बड़ी समस्या रही है, साथ ही लोगों ने ये भी बताया कि जब गाय दूध देना बंद कर देती है तो किसान उसे खुला छोड़ देता है। हर साल इसी सबके चलते सैकड़ों गायें भूखी प्यासी दम तोड़ देती हैं। इन चारा व पानी की समस्याओं के चलते गोशालाओं में बदइंतज़ामी के चलते कई जगहों से गायों के मरने की ख़बरें आए दिन ही देखने व सुनने को मिलती हैं। इतना सब होने के बाद भी ग्राम प्रधान व खासकर ग्राम पंचायत के सचिव व अन्य विभागीय कर्मचारी इन गौवंशों के विकास व उत्थान में लगने वाले पैसों से अपनी जेब भरते हुए अय्याशी करते दिखाई पड़ते हैं।
गौशाला, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ या यूं कहें कि भाजपा सरकार की एक अतिमहत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक अति महत्वपूर्ण योजना भी है लेकिन योजना बनाने वालों ने जिस उद्देश्य से बनाया था उस उद्देश्य पर स्थानीय जिम्मेदारों ने पानी फेरते हुए नियम व कानून की धज्जियां उड़ा रखी हैं।
स्थानीय नागरिकों खासकर उन किसानों जिनके खेत गौशाला के समीप हैं का कहना है कि अन्ना जानवरों से खेती का लाभ नहीं मिल पाता और खेती नष्ट हो जाती है साथ ही कुछ का कहना था कि इसी गौशाला के चलते न तो कोई पैसों पर खेत लेता है और न ही बंटाई पर जिससे लोग परेशान हैं क्यूंकि कुछ लोगों का आरोप था कि बाउंड्री को सही तरीके से नहीं बनाया गया जिसके चलते कमजोर बाउंड्री फांदकर गौवंश बाहर आ जाते हैं, साथ ही कुछ लोगों का कहना था कि जानबूझकर अंदर से गौवंशों को छोड़ दिए जाते हैं ताकि बाहर ही अपना पेट भर लें और चारा का पैसा बचाकर जेब खर्च में इस्तेमाल हो सके।
यहां एक सवाल और महत्वपूर्ण है कि राज्य में गायों की देखभाल के लिए जगह-जगह देखे जाने वाले ‘गोरक्षकों’ की निगाह बीमारी और भुखमरी की शिकार इन गायों पर क्यों नहीं पड़ती?
जिम्मेदार अधिकारी व खासकर जिले की तेजतर्रार जिलाधिकारी को इस गंभीर समस्या पर सख्ती से निगरानी करनी चाहिए ताकि गौशाला के नाम पर आने वाले धन का बंदरबांट न हो सके और शासन की मंशा के अनुसार गौवंशों को भरपूर चारा आदि मिल सके।
रिपोर्ट – शीबू खान