इलाहाबाद के राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं पर 25-25 हजार का ईनाम घोषित कर मुठभेड़ के नाम पर हत्या की साजिश

तीस्ता सीतलवाड़, पूर्व आईपीएस आरबी श्रीकुमार की गिरफ्तारी मोदी सरकार की बदले की कार्रवाई

लखनऊ: रिहाई मंच ने उदयपुर में कन्हैया लाल की निर्मम हत्या की कड़ी भर्त्सना की और सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि नफरत की राजनीति ने देश को खतरे में डाल दिया है. मंच ने नुपुर शर्मा की अब तक गिरफ्तारी न होने को भी घटना का प्रमुख कारण माना है. 
कानपुर तनाव को लेकर पाकिस्तानी कनेक्शन जैसी थ्योरी सूंघना मामले को विदेशी साजिश का हिस्सा कहने की कोशिश है. अटाला, इलाहाबाद की घटना में वांछित 5 अभियुक्तों पर 25-25 हजार पुरस्कार घोषित करते हुए पुलिस द्वारा एनकाउंटर का बयान जारी करना मुठभेड़ के नाम पर हत्या की साजिश की ओर इशारा करता है.
मंच ने वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, पूर्व आईपीएस आरबी श्रीकुमार और पत्रकार जुबैर की गिरफ्तारी को बदले की कार्रवाई कहा. मंच ने जौनपुर के पवारा थाना क्षेत्र के रामपुर हरिगिर गांव निवासी सतीश प्रजापति के घर पर यादव समुदाय के लोगों द्वारा कुम्हार समुदाय की महिलाओं पर ताबड़तोड़ लाठी डंडे से हमले की निंदा करते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की.

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि देश में नफरत की राजनीति को बढ़ावा देने का परिणाम है उदयपुर की घटना. उन्होंने कहा कि न्याय की प्रक्रिया में राजनीतिक दखलंदाजी ने देश को खतरे में डाल दिया है जहां दो समुदायों को एक दूसरे का दुश्मन घोषित कर राज किया जा रहा है. मॉब लिंचिंग और उसके बाद वीडियो बनाकर उसे वायरल करना हत्यारी प्रवृत्ति बन गई है, जिसे उदयपुर की घटना में देखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि उदयपुर की घटना पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है नहीं तो कल एक-दूसरे पर विश्वास करना मुश्किल हो जाएगा.

उन्होंने कहा कि नुपुर शर्मा, नवीन जिंदल की गिरफ्तारी अगर हो गई होती तो देश में न कहीं प्रदर्शन होते न उदयपुर की घटना. लेकिन खून की प्यासी राजनीति को यही भाता है कि देश में साम्प्रदायिकता की खाईं बढ़ती जाए. यह सब एक साजिश के तहत हो रहा है नहीं तो जो पुलिस तीस्ता, आरबी श्रीकुमार, ज़ुबैर को गिरफ्तार कर सकती है वो आखिर नूपुर को क्यों नहीं. जकिया जाफरी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद न्याय, लोकतंत्र को बचाने वालों की ही गिरफ्तारी एक गंभीर संकट की तरफ इशारा करती है कि न्यायपालिका का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है.

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि इलाहाबाद के वरिष्ठ वामपंथी नेता आशीष मित्तल, उमर खालिद, फ़ज़ल खां, जीशान रहमानी और शाह आलम को आरोपी बनाते हुए 25-25 हजार का ईनाम घोषित करना बदले की कार्रवाई है. जिस तरह इस मामले में पुलिस ने पुरस्कार घोषित करते हुए संयोगवश मुठभेड़ की बात कही है उससे साफ है कि इनका जीवन संकट में है. ऐसे के मानवाधिकार आयोग को संज्ञान में लेना चाहिए क्योंकि योगी राज में यूपी पुलिस पर मुठभेड़ के नाम पर हत्या के आरोप लगते रहे हैं. उन्होंने कहा कि पुलिस जिन्हें ईनामिया घोषित कर रही है वो सभी राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता-नेता हैं. पुलिस द्वारा इस मामले में इनको चिन्हित करने का कारण सीएए विरोधी आंदोलन है. जिस आंदोलन में संविधान बचाने के लिए इंसाफ पसंद अवाम सड़कों पर उतर आई थी. न्याय हित में विधिक रूप से गिरफ्तार करने के दौरान संयोगवश मुठभेड़ की स्थिति बनने की बात कहने वाली पुलिस बताए कि किस न्याय हित में किसके इशारे पर जावेद को मिली नोटिस के नाम पर उनकी पत्नी के घर पर बुलडोजर चला दिया गया.

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